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dhanteras and deepawali puja muhurat information with eight forms of goddess lakshmi

22 Oct, 2022 DhanTeras and Deepawali Puja Muhurat information with Eight Forms of Goddess Lakshmi

DhanTeras and Deepawali Puja Muhurat information with Eight Forms of Goddess Lakshmi

धनतेरस, दीपावली पूजा मुर्हुत के साथ जानें देवी लक्ष्मी के अष्ट स्वरूप

धनतेरस आज दिनांक 22 अक्टूबर की शाम 6ः02 बजे से प्रारंभ होकर कल 23 अक्टूबर की शाम 6 बजे तक रहेगा। धनतेरस की खरीदी वस्तु का पूजन आज 22 अक्टूबर की सांय 6 से 7ः30 तक कर लें। अन्य मुर्हुत आज रात्रि 9 बजे से 12 बजे तक का है। बही खाता लेखन, हवन आदि 23 अक्टूबर की सुबह 9 बजे से 12 बजे अथवा दोपहर 1ः30 से 3 बजे तक कर लें।

धनतेरस पूजा विधि-

धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरी, मॉं लक्ष्मी और कुबैर जी की पूजा की जाती है। इस दिन उपरोक्त पूजा मुहुर्त में पूजा स्थल पर गाय के घी का दीपक प्रज्जवलित करें। भगवान को धूप, दीप, पफल, पुष्प, मिठाई अर्पित करें। हल्दी एवं चावल पीसकर उसके घोल से मुख्य दरवाजे पर ओम बनाएं, इससे लक्ष्मीजी प्रसन्न होती हैं। इसके अलावा घर के अंदर 13 दिए एवं घर के बाहर 13 दिए संध्या के समय जलाएं। आज से लेकर दीपावली तक यदि अखंड दिया जला सकें, तो सोने पे सुहागा होगा।

दीपावली पूजा मुहुर्त

24 अक्टूबर की शाम गोधुली बेला में 6 से 7ः30 अथवा रात्रि में 10ः30 से 12 में निवास स्थल का श्रेष्ठ मुहुर्त है। व्यापार स्थल पर सुबह 11ः40 से 12ः20 तथा दोपहर 3 से 6 बजे तक का है। उल्लेखनीय है कि दीपावली, अमावस्या तिथि 24 अक्टूबर 5ः27 बजे से प्रारंभ होकर 25 अक्टूबर की सुबह 4ः14 बजे तक रहेगी। इसके बाद सूर्य ग्रहण का सूतक प्रारंभ हो जाएगा।

अष्ट लक्ष्मी के स्वरूपों की महत्ता का वर्णन-

अब हम आपको देवी लक्ष्मी के आठों स्वरूपों का वर्णन करते हैं। इसके अंतर्गत उन स्वरूपों के क्या नाम हैं, उनकी महत्ता क्या है, किस स्वरूप से हमें कौन सा दिव्य आशीर्वाद मिलता है इत्यादि।

01- आदि लक्ष्मी जो देती हैं परमशान्ति, आनंद एवं सकारात्मक ऊर्जा

आदिलक्ष्मी देवी लक्ष्मी का आदि रूप है। आदि का अर्थ होता है प्रारंभिक अथवा सबसे पहला। अतः आदिलक्ष्मी आप हम सभी के अस्तित्व का मूल कारण है और उनके अस्तित्व के बिना पूरी सृष्टि की कल्पना नहीं की जा सकती है। वस्तुतः आदिलक्ष्मी ही महालक्ष्मी हैं अतः समस्त देवताओं द्वारा आपकी स्तुति की जाती है। ऐसा माना जाता है कि आदिलक्ष्मी (महालक्ष्मी) ने ही महाकाली, महासरस्वती को उत्पन्न किया है।  आदि लक्ष्मी का स्वरूप अत्यंत मनोहर हैं। वे गुलाबी कमल के फूल पर बैठती हैं, लाल वस्त्र एवं विभिन्न आभूषणों से श्रृंगारित हैं। उनके दो हाथ अभय एवं वरदमुद्रा में तथा अन्य हाथ में कमल एवं श्वेत झंडा चित्रित किया गया है। आदि एक अन्य अर्थ स्त्रोत भी होता है। आदिलक्ष्मी की कृपा से व्यक्ति का परमशान्ति एवं आनंद का स्त्रोत जाग्रत होने लगता है। इससे ऊर्जा का स्तर बढ जाता है एवं यही ऊर्जा जीवन के लक्ष्यों की सहजता से प्राप्ती करवाती है।

02- धन लक्ष्मी, जिनकी कृपा से शेयर, प्रॉपर्टी, व्यापार में मिलती है उच्च कोटी की सफलता

जैसा कि नाम से ही चरितार्थ है धनलक्ष्मी अर्थात धन की देवी हैं। देवी धनलक्ष्मी को लाल रंग के वस्त्रों में तथा छः हाथों से चित्रित किया गया है। देवी के हाथों में सुदर्षन चक्र, अमृत कलश, धनुष-बाण, कमल का पुष्प, एक हाथ अभय मुद्रा तथा अन्य एक हाथ सोने के सिक्के प्रदान करते हुए है। धनलक्ष्मी के आशीर्वाद से संसार के समस्त भौतिक सुखों की प्राप्ती होने लगती है। पूर्वजन्म के दुष्कर्म अथवा संचित पाप कट जाते है तथा धन सुगमता से प्राप्ति के मार्ग प्रशस्त्र होने लगते हैं। व्यक्ति की यह चेतना अथवा पूर्वानुमान सटीक बैठने लगता है कि किस क्षेत्र, जैसे प्रॉपटी, शेयर मार्केट अथवा व्यापार में कितना धन लगाया जाए, तो आगामी वर्षों में उन्हें मुनाफा हो सकता है। कुल मिलाकर धनलक्ष्मी की कृपा व्यक्ति के भौतिक लक्ष्यों की पूर्ति करने में सहायक होती हैं।

3- धान्य लक्ष्मी जो भर देती हैं भंडारे, करती हैं दरिद्रता को दूर

धान्यलक्ष्मी के इस रूप को अन्न प्रदायिनी, अनाज की देवी, अच्छी फसल प्रदान करने वाली देवी कहा जाता है। देवी लक्ष्मी का यह रूप बेहतर कृषि के माध्यम से मानवजीवन की रक्षा करता हैै। अतः जिन लोगों की खेती-किसानी की आजीविका है उन्हें माता के इस रूप के आशीष से लाभ होता है। वहीं गृहस्थों पर धान्य लक्ष्मी की कृपा से भंडारे भर जाते हैं, अन्न का अभाव समाप्त हो जाता है, बरक्कत होने लगती है। बहुत से ऐसे लोग होते हैं जिन्हें दो वक्त की रोटी के कमाने के लिए बहुत संघर्ष करना पडता है। अन्न की कमी, श्रेष्ठ भोजन प्राप्ति के मार्ग में आ रही समस्त बाधाएं धान्यलक्ष्मी की कृपा से दूर हो जाती है। देवी की कृपा से व्यक्ति के चेहरे पर तेज आ जाता है तथा उसका प्रभाव समाज में पडता है। धान्यलक्ष्मी की कृपा होने से व्यक्ति ना सिर्फ स्वयं श्रेष्ठ भोजन का आनंद उठाता है, बल्कि वह लोगों को अन्न के भंडारे, दान इत्यादि कराकर यष प्राप्त करता है। धान्यलक्ष्मी को हरे रंग के वस्त्रों में आठ सषस्त्र के रूप् में चित्रित किया गया है जिनके दो हाथ में कमल, अन्य हाथों में गदा, धान की पफसल, गन्ना, केला, अन्य दो हाथ अभय और वरमुद्रा में हैं।
 

4-गज लक्ष्मी देती हैं वाहन सुख साथ ही जीव व्यापार में सफलता

गज से आशय पषुधन एवं षक्ति से है। प्राचीन समय में लोग किसी व्यक्ति की सम्पन्नता का आकलन उनके पषुओं को देखकर लगाते थे। जिस व्यक्ति के पास जितनी अधिक मात्रा में पशुधन होता था जैसे गाय, भैंस, बकरी, भेड, घोडे, बैल इत्यादि वह उतना प्रतिष्ठित एवं संपन्न व्यक्ति कहलाता था। हो भी क्यों ना, क्योंकि जब उसे धन की आवश्यकता पडती थी, तो वह पशुओ का विक्रय करके आसानी से धन प्राप्त कर सकता था, यही कारण है कि पशु को पशुधन कहा जाता था। गाय-भैंस से प्राप्त दूध, दही, घी इत्यादि भी धन प्राप्ति का माध्यम बनता था। घोडे अथवा बैल व्यक्ति की सवारी एवं कृषि के काम आते थे। आज इनका स्थान दोपहिया एवं चार पहियां गाडियों ने ले लिया है। अतः गजलक्ष्मी की कृपा से पशुधन के अतिरिक्त व्यक्ति को श्रेष्ठ वाहन प्राप्त होता है। वहीं गज से आशय चूंकि शक्ति से है अतः श्रेष्ठ वाहन भी तो शक्ति से कम नहीं, कहीं भी आना-जाना हो, समय-शक्ति की बचत करता है। अतः गजलक्ष्मी शक्ति की भी देवी कहलाती हैं। आपके स्वरूप की व्याख्या की जाए, तो माता लाल वस्त्रों में सुसज्जित, चारभुजा धारी हैं। उनके दो हाथों में कमल, एक हाथ अभय तथा अन्य एक हाथ वरमुद्रा में हैं। गजलक्ष्मी के दोनों ओर स्थित गज अर्थात हाथी उनका अभिषेक संपादित करते हैं।

5-संतान लक्ष्मी प्रदान करती हैं संतान और करती हैं उसकी रक्षा

अष्टलक्ष्मी के स्वरूपों में उनका एक रूप संतानलक्ष्मी का भी है। संतानलक्ष्मी की कृपा से मनुष्यों को उत्तम संतान की प्राप्ती होती है। जिनकी पूर्व से संतान है, तो उन पर माता कृपा करती हैं। संतानलक्ष्मी का चित्रण बडा ही अदभुत है। संतानलक्ष्मी के छः हाथ हैं। माता के दो हाथों में कलश, एक में तलवार, एक में ढाल, एक हाथ अभयमुद्रा में है तथा एक हाथ से देवीजी ने संतान को पकडा हुआ है। कुल मिलाकर उपरोक्त अस्त्र-शस्त्रों के माध्यम से संतानलक्ष्मी अपनी संतान को किसी भी संकट से बचाने की क्षमता रखती हैं, ऐसा भाव प्रकट होता हैं। जिनकी संतान का स्वास्थ्य सही ना रहता हो अथवा जिनकी संतान साहसिक अथवा ऐसे कार्यक्षेत्र में हो जो जोखिम एवं चुनौतीभरा हो, उन्हें अष्टलक्ष्मी अनुष्ठान से लाभ मिलता है। उनकी संतान की रक्षा संतानलक्ष्मी स्वयं करती हैं।

6- वीर लक्ष्मी व्यापार में जोखिम लेने का देती हैं साहस, करती हैं भय निवारण

वीरलक्ष्मी जातक में वीरता एवं साहस के गुण भरती हैं। वीरलक्ष्मी के अतिरिक्त आपको धैर्यलक्ष्मी के नाम से भी जाना जाता है। धैर्यलक्ष्मी संयम और धैर्य की देवी हैं। जितने भी बडे व्यापारी हुए, तो दो गुण हम उनमें अवष्य ही पाएंगे धैर्य और वीरता। यही दो गुण व्यक्ति को सफल व्यापारी बनाने हैं। क्योंकि किसी भी व्यवसाय में चुनौती एवं धन डूबने का भय बना रहता है, ऐसे में साहस और धैर्य की परम आवश्यकता पडती है। वीरलक्ष्मी की कृपा से व्यक्ति में उपरोक्त गुणों में अभिवृद्धि होती है। इन गुणों के कारण व्यक्ति ना सिर्फ अपने व्यापार, अपनी जॉब, कर्मक्षेत्र में सफल होता है। एक पुरानी फिल्म का गाना है- जिंदगी हर कदम एक नई जंग है। जंग से मतलब कठिनाइयों पर काबू पाना। जीवन की जंग को जीतने में निडरता, साहस और शक्ति की आवश्यकता पडती है, उपरोक्त गुण वीरलक्ष्मी की कृपा से प्राप्त होते है। देवी वीरलक्ष्मी का स्वरूप लाल वस्त्र, आठ हाथों में विभिन्न अस्त्र-शस्त्र जैसे कि चक्र, धनुष, तीर, त्रिषूल, शंख, ताड के पत्ते हैं, अन्य दो हाथ अभय एवं वरमुद्रा में हैं।

7-विजय लक्ष्मी प्रदात्री हैं विजयश्री की

विजयलक्ष्मी को विजयालक्ष्मी के नाम से भी जाना जाता है। आप विजयश्री अर्थात सफलता प्रदायिनी देवी हैं। आज हम गला काट प्रतिस्पर्धा के युग में जीवन यापन कर रहे हैं। आने वाले समय में यह प्रतिस्पर्धा और अधिक बढ जाएगी। इस प्रतिस्पर्धा के युग में देवी विजयलक्ष्मी की कृपा परम आवश्यक है। हमारी आजीविका अथवा जीवन-यापन का कोई भी क्षेत्र हो, प्रत्येक व्यक्ति को विजयलक्ष्मी के आशीर्वाद की आवश्यकता है। अक्सर देखने में आता है सफलता प्राप्त कर लेने के उपरांत व्यक्ति के कई शत्रु बन जाते हैं, भले ही आप उनसे शत्रुता नहीं रखें। ऐसे ज्ञात-अज्ञात शत्रुओं पर देवी विजयालक्ष्मी अंकुश लगाती हैं। विजयलक्ष्मी के आठ हाथ हैं तथा उनमें वह विभिन्न प्रकार के शस्त्रों को धारण करती हैं। विजया लक्ष्मी अभय और वरमुद्रा में अन्य हाथों में चक्र, शंख, तलवार, ढाल, कमल, पाश धारण करती हैं। जिससे भक्त के शत्रुओं की बुद्धि और उनकी क्रियायों को वे बांध देती है। आप नीले वस्त्रों में सुषाभित हैं। व्यापार की दृष्टि से इसे समझें तो चार दुकानों में जिसकी दुकान सबसे ज्यादा चलती है, तो अन्य तीन दुकानदार मन ही मन सामने वाले से शत्रुता का भाव रखने लगते हैं। तो ऐसे ज्ञात-अज्ञात शत्रुओं से वे हमारी प्रतिपल रक्षा करती हैं।

8- विद्या लक्ष्मी बालकों को देती हैं ज्ञान, व्यापारियों को व्यापारिक बुद्धि

विद्या अर्थात ज्ञान की देवी। चूंकि आदिलक्ष्मी (महालक्ष्मी) ने ही विद्या की देवी को प्रकट किया है अतः लक्ष्मी और सरस्वती में कोई भेद नहीं है। विद्यालक्ष्मी को ही ऐष्वर्यलक्ष्मी के नाम से जाना जाता है। ऐष्वर्यलक्ष्मी सुख और विलासिता की देवी मानी गई हैं। विद्यालक्ष्मी की कृपा से व्यक्ति ज्ञान प्राप्त करता है, यही ज्ञान फिर प्रेक्टिकल जीवन में आगे बढने के काम आता है। फिर कॅरियर में सफलता से संबंधित व्यक्ति को विभिन्न ऐष्वर्यों की प्राप्तियां होती है। कुल मिलाकर विद्या से ही विभिन्न ऐष्वर्य प्राप्ति का मार्ग सुगम होता है। अतः विद्यालक्ष्मी की कृपा अति आवश्यक है। विद्यालक्ष्मी स्वेत साडी धारण किए हुआ हैं, जिनकी छवि देवी सरस्वती से मिलती-जुलती है। विद्यालक्ष्मी के पास वेद ग्रन्थ, कलम के रूप में एक मोरपंख, एक हाथ वरद और एक हाथ अभयमुद्रा में है। अभयमुद्रा का हाथ से जैसे विद्यालक्ष्मी संकेत दे रही हो डरो मत, अपने ज्ञान का सही उपयोग करते हुए जीवन में आगे बढो। सफलता प्राप्ति के मार्ग की बाधाएं विद्यालक्ष्मी की कृपा से कट जाती हैं क्योंकि सही समय पर सही निर्णय लेने की क्षमता व्यक्ति में आ जाती है, समस्त भम्र दूर हो जाते हैं। अच्छे-बुरे की समझ विकसित हो जाती है। ऐसे में सफलता मिलना तो तय है।

अष्टलक्ष्मी पूजा विधि से एक ऊर्जा निकलती है, जो हमारी सहायता करती है, जो पुरूषार्थ करने की शक्ति एवं समझ देती है, जीवन में कुछ बडा करने का साहस और सकारात्मकता आती है। कुल मिलाकर व्यक्ति को कर्मप्रधान होकर इस प्रकार की ऊर्जा का लाभ लेना चाहिए ताकि सफलता का मार्ग प्रशस्त्र हो सके। हमारा अनुभव है विद्या और धन दोनों ही धार्मिक एवं शुभ कार्यों में लगाने से बढता है। लक्ष्मी और सरस्वती के भंडार की, बडी अपूरब बात ज्यों खरचै त्यों-त्यों बढै, बिन खरचै घट जात। आप एवं आपके परिवारजनों को अष्टलक्ष्मी की कृपा प्राप्त हो, हम यह कामना करते हैं।

कुल मिलाकर ऐसा कौन है जो लक्ष्मीजी की कृपा नहीं चाहता? सभी चाहते हैं देवी लक्ष्मी उन पर प्रसन्न हो। और बात यदि व्यापारी बंधुओं की करें, तो उन्हें अपने बिजनेस को बढाने के लिए लक्ष्मी की कृपा की अति आवश्यकता होती है। कहावत भी है, धन की धन को आकर्षित करता है। जितना धन व्यापार में लगाएंगे, उतना मुनाफा मिलेगा। हम सभी जानते हैं हिंदू सनातन धर्म में चार प्रकार के पुरूषार्थ कहे गए हैं- धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष। इसमें द्वितीय पुरूषार्थ अर्थ (धन, व्यापार, नौकरी, आजीविका) लक्ष्मीजी की कृपा से ही प्राप्त हो सकता है। लक्ष्मीजी के आठ स्वरूप कहे गए हैं जिन्हें अष्टलक्ष्मी कहा गया है। अष्टलक्ष्मी की अनुकूलता से चारों ही पुरूषार्थ सिद्ध हो जाते हैं। अष्टलक्ष्मी पूजा अनुष्ठान (विधि) के द्वारा लक्ष्मीजी के आठों स्वरूपों की कृपा एक साथ पाई जा सकती है। साथ ही उपरोक्त चारों पुरूषार्थों को सरलता से प्राप्त किया जा सकता है। जब आपके पास पर्याप्त धन होगा तो धार्मिक कार्य जैसे धाार्मिक यात्राएं, धार्मिक आयोजन आप करेंगे, इससे पहला पुरूषार्थ धर्म सध जाएगा। द्वितीय पुरूषार्थ पर्याप्त धन प्राप्ति का है, धन होगा तो आप व्यापारिक कार्यों में, सुख-सुविधा प्रदान करने वाली वस्तुओं की खरीदारी, दान इत्यादि कार्यों में उपयोग करके दूसरा पुरूषार्थ साध सकते हैं। वहीं, विभिन्न सांसारिक कामनाओं की पूर्ति धन से ही होती हैं। इसके माध्यम से तीसरा पुरूषार्थ भी सध जाएगा। चतुर्थ पुरूषार्थ मोक्ष, उपरोक्त तीनों पुरूषार्थों के पूर्ण होने तथा लक्ष्मीजी की कृपा से वह भी सध जाएगा। इस प्रकार आपने जाना कि अष्टलक्ष्मी जी की कृपा कितनी एवं क्यों आवश्यक है।

यदि आपकी कामना संतान की है तो अष्टलक्ष्मी के एक स्वरूप जिन्हें संतानलक्ष्मी कहा जाता है, की कृपा से यह संभव हो सकता है। आप अपने घर में बरक्कत (समृद्धि) चाहते हैं, तो धान्यलक्ष्मी की कृपा से यह संभव है। आप यदि अच्छा वाहन, ऐष्वर्य चाहते हैं तो गजलक्ष्मी के आशीर्वाद से यह संभव है। वहीं यदि आपकी कामना है कि स्वयं की उच्चशिक्षा अथवा आपके बच्चे के भविष्य, उसकी शिक्षा-दीक्षा संबंधी है, तो विद्यालक्ष्मी की कृपा से यह संभव है। आप अच्छी नौकरी चाहते हैं, व्यापार में बढोत्तरी चाहते हैं अथवा नया व्यापार प्रारंभ करना चाहते हैं तो धनलक्ष्मी की कृपा से यह संभव है।

नारायण, कुबैर के साथ की जाती है पूजा

लक्ष्मी जी की पूजा सदैव नारायण के साथ की जाती है। इसके अलावा अष्ट लक्ष्मी के सभी स्वरूपों की पूजा कुबैर के साथ करने से इस पूजा का महत्व अत्यधिक बढ जाता है।

लक्ष्मीजी की उत्पत्ति और उनका स्वरूप-

समुद्र मंथन के दौरान लक्ष्मीजी की उत्पत्ति क्षीरसागर से हुई थी। सागर जितना विशाल एवं आकर्षक होता है, ठीक वैसे ही देवी लक्ष्मी बडी उदार अर्थात भक्तों पर शीघ्र प्रसन्न होने वाली, अतिपवित्र, दिव्य हैं। लक्ष्मीजी के चार हाथ हैं, जो मानव जीवन के चार लक्ष्यों धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष का प्रतिनिधित्व करते हैं। लक्ष्मीजी के एक हाथ से सोने के सिक्को की झडी निकलती दिखाई देती है, यह उन्हें धनप्रदायिनी देवी के रूप में दर्शाता है। अन्य एक हाथ आशीर्वाद प्रदान करने की मुद्रा में है। उन्हें कमल का पुष्प अति प्रिय है इसलिए अपने दो हाथों में वे कमल धारण करती हैं। माता लक्ष्मी स्वयं पूरी तरह खिला हुआ कमल जो पानी में तैर रहा है, के आसान पर विराजमान हैं। उल्लेखनीय है कि कमल का पुष्प सौंदर्य, पवित्रता, आध्यात्मिकता एवं प्रजनन क्षमता का प्रतीत है। पानी जीवन एवं शांति का प्रतीक है। माता के दोनों ओर स्वेत हाथी उनका अभिषेक करते हैं। हाथी शक्ति के साथ-साथ बुद्धिमानी का प्रतिनिधित्व करते हैं। देवी लक्ष्मी जगत के पालनकर्ता भगवान विष्णु की पत्नी है अतः आप जगतमाता कहलाईं। आप गतिशील ऊर्जा, धन, भाग्य, विलासिता और समृद्धि की देवी के रूप में पूजी जाती हैं। आप लाल वस्त्र, आकर्षक आभूषणों एवं अन्य सौभाग्यसूचक चिन्हों से विभूषित रहती हैं। सच तो यह है कि यहां पर उनके दिव्य रूप एवं गुणों का जितना वर्णन किया जाए, कम ही होगा। अब हम आपको यह जानकारी देते हैं कि आपकी समस्त कामनाओं की पूर्ति के लिए अष्टलक्ष्मी पूजाविधि किस प्रकार सहायक हो सकती है।

व्यापारिक सफलता, सम्पन्नता, संतान एवं सुख प्राप्ति के लिए करवाएं अष्टलक्ष्मी पूजा विधि (अनुष्ठान)

अष्टलक्ष्मी के अनुष्ठान (विधि) से मानव के समस्त मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं। हमारे द्वारा अष्टलक्ष्मी की पूजाविधि विशेष मूहूर्त में, वैदिक ब्राह्मणों द्वारा सम्पन्न करवाई जाती है। पूजा-अनुष्ठान अवधि की वीडियो आपके संदर्भ के लिए प्रेषित किए जाते हैं। अनुष्ठान सम्पन्न होने पर प्रसाद कुरियर से प्रेषित कर दिया जाता है। हमारे कई यजमानों को इस पूजाविधि से काफी लाभ हुआ है तथा वे प्रत्येक वर्ष हमसे यह विधि संपादित करवाते हैं। कार्तिक मास, दीपावली के अवसर पर लक्ष्मी पूजा विधि का महत्व बढ जाता है अतः आप भी अष्टलक्ष्मी पूजाविधि करवाने के लिए हमारे मोबाइल नंबर 9316258163 पर संपर्क कर सकते हैं। देवी लक्ष्मीजी के स्वरूप की तरह यह अनुष्ठान भी बडा दिव्य होता है। जातक को इसके प्रत्यक्ष परिणाम आगामी माहों में दिखाई देने लगते हैं।

दीपावली की षुभकामनाओं सहित,

एस्ट्रोलॉजर डॉ. प्रीतिबाला पटेल

9316258163

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