जन्मकुंडली के यह योग देते हैं लक्ष्मी कृपा-
जन्मकुंडली के आधार पर हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि जातक पर लक्ष्मीजी की कृपा कितनी मात्रा में हो सकती हैं। इसके लिए विभिन्न ग्रहों की जन्मकुंडली में युति अथवा अलग-अलग स्थानों पर स्थिति से बनने वाले शुभ योग जिम्मेदार होते हैं। यह अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण आर्टिकल है जिसमें हमारा गत कई वर्षों का शोध सम्मिलित हैं। तो आप भी अपनी जन्मकुंडली में यह योग देख सकते हैं अथवा हमसे चेक करवा सकते हैं। हमारा यह भी अनुभव रहा है कि अगर किसी की पत्रिका में निम्नलिखित योग हैं, तो ऐसे में उन्हें लक्ष्मी की प्रसन्नता के लिए अष्टलक्ष्मी अनुष्ठान करवाना चाहिए क्योंकि ऐसे में उन पर लक्ष्मी जी की कृपा अधिक मात्रा में प्राप्त हो सकती है, उन्हें शीघ्र लाभ होता है।
आइए जानते हैं जन्मकुंडली के ऐसे कौन से शुभ योग होते हैं जिसमें अष्टलक्ष्मी पूजा अनुष्ठान से आप लोगों को लाभ प्राप्त हो सकता है-
1- चंद्र-मंगल का महालक्ष्मी योग
जिनकी जन्मकुंडली में मंगल एवं चंद्र ग्रह की युति हो अर्थात यह दोनों ग्रह एक ही भाव में स्थित हों। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार उपरोक्त दोनों ग्रह मिलकर ‘महालक्ष्मी योग’ का निर्माण करते हैं। जन्मकुंडली के केन्द्र एवं त्रिकोण भावों में यह योग ज्यादा प्रभावी होता है। ऐसे जातकों को जीवन में महालक्ष्मी की कृपा प्राप्ति के योग बनते हैं। योग के प्रभाव से उन्हें बडी सम्पत्ति अथवा धन का लाभ होता देखा गया है। मगर त्रिकभावों में यह योग कट जाता है। ऐसे में अष्टलक्ष्मी अनुष्ठान से महालक्ष्मी की कृपा प्राप्ति होती है।
2- बुध-शुक्र लक्ष्मी नारायण योग हो
जिन लोगों की जन्मकुंडली में एक ही भाव में बुध एवं शुक्र ग्रह हो, तो इसे लक्ष्मी नारायण योग कहा जाता है। जन्मकुंडली के केन्द्र एवं त्रिकोण भावों में यह योग ज्यादा प्रभावी होता है। ऐसे व्यक्ति अष्टलक्ष्मी अनुष्ठान के माध्यम से इस योग को प्रबल बना सकते हैं तथा लक्ष्मीजी की कृपा प्राप्त कर सकते हैं। अक्सर व्यापारी बंधु एवं फिल्मी कलाकारों की पत्रिका में यह योग पाया जाता है |
3- शुक्र ग्रह बारहवें भाव में हो
लक्ष्मी का कारक कहलाने वाला शुक्र ग्रह यदि जन्मकुंडली के बारहवें भाव में स्थित हो, तो यह योग धनप्रदायक एवं विलासिता प्रदान करने वाला बन जाता है। ऐसे में शुक्र ग्रह के प्रभाव को अष्टलक्ष्मी पूजा-अनुष्ठान के माध्यम से ज्यादा शुभ बनाकर, लाभ प्राप्त किया जा सकता है। उल्लेखनीय है कि उपरोक्त ग्रह की द्वादष भाव में स्थिति एक तरह से राजयोग कारक हो जाती है और अष्टलक्ष्मी पूजा विधि के द्वारा उपरोक्त राजयोग को प्रबल राजयोग में बदला जा सकता है।
4- चंद्र अथवा शुक्र ग्रह दूसरे, पांचवे अथवा ग्यारहवें भाव में हों
जन्मकुंडली का दूसरा भाव धन भाव कहलाता है, ग्यारहवां भाव लाभ अथवा संपत्ति भाव कहलाता है तथा पंचम भाव प्रसिद्धि का भाव कहलता है। उपरोक्त भावों में चंद्र अथवा शुक्र ग्रह स्थित हो, तो अष्टलक्ष्मी पूजा करवाने से लक्ष्मीजी की कृपा जातक को शीघ्र मिलती देखी गई है। चंद्रमा को वैसे भी लक्ष्मीजी का भाई माना जाता है क्योंकि चंद्रमा की उत्पत्ति भी समुद्र से हुई थी।
इस दोषों में भी लाभ देती है अष्टलक्ष्मी पूजा-
जन्मकुंडली में कुछ दोष ऐसे होते हैं जिससे व्यक्ति को लगता है कि दुर्भाग्य पीछा ही नहीं छोड रहा जैसे पितृदोष, श्रॉपित दोष से उत्पन्न गंभीर कष्ट। जिससे लगातार व्यक्ति बाधित एवं प्रभावित रहा है। इसके अलावा क्रूर ग्रहों से बनने वाले अन्य दुर्योगों में भी संबंधित व्यक्ति को लगातार पीडा बनी रहती है। यह सब जानकारी नीचे दी जा रही है। इन दोषों में भी अष्टलक्ष्मी अनुष्ठान से व्यक्तियों को लाभ पहुंचता है।
1-पितृदोष में लाभ देती है अष्टलक्ष्मी पूजा
जिस व्यक्ति की जन्मकुंडली में पितृदोष होता है उन्हें पैत्रिक संपदा मिलने में कठिनाई आती है, लोन की स्थिति उन पर बनी रहती है, जॉब अक्सर छूटती रहती है, कोई भी बिजनेस फलता नहीं है, धन दवाईयों में जाता रहता है, लगातार मानसिक अशांति तथा शारीरिक बाधा बनी रहती है, स्वयं का घर नहीं बन पाता, विवाह नहीं हो पाता, उम्र से काफी पहले व्यक्ति बूढा सा दिखने लगता है, धन अभाव में कलह का वातावरण उनके घर-परिवार में बना रहता है। उनके कामों में कोई ना कोई अडचनें आती रहती हैं। यश का अभाव रहता है। पितृदोष के यह प्रमुख लक्षण है, जो बिना कुंडली दिखाए पता किया जा सकता है कि संबंधित पर पितृदोष है अथवा नहीं। ऐसे में अष्टलक्ष्मी पूजा से व्यक्ति को लाभ मिलता है।
2- कुंडली में शुभ ग्रह पीडित हो तब
ज्योतिषशास्त्र में शुभ ग्रह चंद्रमा, बुध, शुक्र तथा गुरू ग्रह को माना जाता है। इन ग्रहों पर क्रूर ग्रहों की नजर पडने पर अथवा दुःस्थान भावों में बैठने पर व्यक्ति के जीवन में संघर्ष बढ जाता है। ऐसे में अष्टलक्ष्मी अनुष्ठान शुभ ग्रहों के प्रभाव को बढाता है जिससे धन एवं मान-सम्मान सहज रूप से प्राप्त होने लगता है।
3-चंद्रमा कू्रर ग्रहों के प्रभाव में होने पर
जन्मकुडली में चंद्रमा यदि राहू, शनि अथवा केतु के साथ हो अथवा सूर्य के साथ होने पर भी चद्रमा का बल अर्थात उसकी शुभता प्रभावित हो जाती है। चंद्रमा भी चूंकि समुद्रमंथन के दौरान समुद्र से निकले थे अतः चंद्रमा लक्ष्मीजी के भाई कहलाते हैं। जन्मकुंडली में चंद्रमा यदि पीडित हो तो अष्टलक्ष्मी पूजाविधि के माध्यम से चन्द्रमा की शांति एवं पुष्टि होती है और चंद्रमा भी धनप्रदान बन जाते हैं।
4- लोन की स्थिति होने पर
ज्योतिषशास्त्र में मंगल ग्रह को मोटे तौर पर लोन की स्थितियो के लिए जिम्मेदार माना गया है। लोन के शीघ्र निपटान तथा आय के स्त्रोतों की वृद्धि में अष्टलक्ष्मी पूजाविधि लाभ करती है। आय के नए स्त्रोत बनने लगते हैं तथा लोन जल्दी पूरा हो जाता है।
कुल मिलाकर ग्रहों की उपरोक्त स्थितियों, युतियों में अष्टलक्ष्मी अनुष्ठान श्रेष्ठ परिणाम देता है। देष-विदेष में हमसे जुडे कई लोग हैं जिन्हें इस पूजाविधि से लाभ हुआ तथा वह प्रत्येक वर्ष हमने यह पूजाविधि सम्पन्न करवाते हैं। इस पूजा विधि से एक ऊर्जा निकलती है, जो हमारी सहायता करती है, जो पुरूषार्थ करने की शक्ति एवं समझ देती है, जीवन में कुछ बडा करने का साहस और सकारात्मकता आती है। कुल मिलाकर व्यक्ति को कर्मप्रधान होकर इस प्रकार की ऊर्जा का लाभ लेना चाहिए ताकि सफलता का मार्ग प्रशस्त्र हो सके। हमारा अनुभव है विद्या और धन दोनों ही धार्मिक एवं शुभ कार्यों में लगाने से बढता है। लक्ष्मी और सरस्वती के भंडार की, बडी अपूरब बात ज्यों खरचै त्यों-त्यों बढै, बिन खरचै घट जात। आप एवं आपके परिवारजनों को अष्टलक्ष्मी की कृपा प्राप्त हो, हम यह कामना करते हैं।
कार्तिक मास, दीपावली के अवसर पर लक्ष्मी पूजा विधि का महत्व बढ जाता है अतः आप भी अष्टलक्ष्मी पूजाविधि करवाने के लिए हमारे मोबाइल नंबर 9316258163 पर संपर्क कर सकते हैं। देवी लक्ष्मीजी के स्वरूप की तरह यह अनुष्ठान भी बडा दिव्य होता है। जातक को इसके प्रत्यक्ष परिणाम आगामी माहों में दिखाई देने लगते हैं।
शुभकामनाओ सहित,
एस्ट्रोलॉजर डॉ. प्रीतिबाला पटेल
9316258163
#Best_Astrologer_in_India #Ashta_Lakshmi_Pooja_for_Success_in_Business #Lakshmi_Pooja #Lakshmi_Pooja_on_Dipawali #Ashta_Lakshmi_Pooja #Lakshmi_Pooja_Mantra #Ashta_Lakshmi_Pooja_Mantra #Laxmi_Puja_Vidhi